Sunday, July 14, 2019

पंचक नक्षत्र ( महत्वपूर्ण नक्षत्र)

प्राचीन भारतीय ज्योतिष विशेषतया नक्षत्रों पर आधारित रहा है। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त सभी क्रि भारतीय ज्योतिष विशेषतया नक्षत्रों पर आधारित रहा है। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त सभी क्रिया कलापो में उनकी शुभशुत्व एवं मुहूर्त का ज्ञान नक्षत्रों द्वारा ही किया जाता रहा है। फलित ज्योतिष में बहुत महत्व दिया गया है उसी आधार पर इनका वर्गीकरण किया गया है। उन आधार पर पंचक संज्ञक नक्षत्र भी हैं। यह नक्षत्र है धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्र हैं। जिस समय किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है सबसे पहले इन नक्षत्रों पर विचार किया जाता है। इन नक्षत्रों में कोई भी शुभकृत्य निषेध माना गया है। जैसे दक्षिण दिशा में यात्रा करना,  झोपड़ी, मकान, दुकान में छत डालना, चारपाई, पलँग, आदि बनाना, बांस या ईंटओ की दीवार बनाना , तांबा, लोहा, पीतल, लकड़ी आदि इकठ्ठा करना, गृहारम्भ रख कर छत डालना, मुर्दा जलाना आदि का कार्य करना अशुभ माना जाता हैं।

       जिस समय चन्द्रमा कुम्भ और मीन राशि मे गोचर करता है। 

1.    चन्द्र पंचक नक्षत्र 

 इस   नक्षत्र की प्रवृत्ति होती है कि यदि कोई दुर्घटना इस समय होती हैं तो उस घटना की पांच बार से पुनरावृत्ति होती हैं और शुभ मुहूर्त में चयन करते समय त्याग दिया जाता है। यदि किसी परिवार में पंचक के समय कोई मृत्यु होती हैं तो एक साल के अंतराल में उस परिवार में पांच मृत्यु होती हैं। मृतक व्यक्ति का दाह संस्कार करते समय मृत शरीर के साथ कुशा घास के पांच पुतलो का भी दाह संस्कार किया जाता है।    इस पंचक नक्षत्र में नए मकान निर्माण करना अच्छा नही होता हैं।दाह संस्कार और दक्षिण की ओर यात्रा करना शुभ नही होता हैं।

 मृत्यु के बाद  इस पंचक नक्षत्र की शान्ति करवाना अवश्य करनी चाहिए।


घनिष्ठा नक्षत्र 2 चरण से रेवती 4 चरण तक प्रेत का दाह ,दक्षिण दिशा की यात्रा , खाट का बुनवाना, घर के लकड़ी लाना नही चाहिए।पंचक नक्षत्र धनिष्ठा के उत्तरार्ध से रेवती अंत तक रहता हैं।
पंचक नक्षत्र तीन प्रकार के होते है।
1. चन्द्र पंचक नक्षत्र     
  2. तिथि पंचक  
 3. सूर्य पंचक नक्षत्र


                                 

तिथि पंचक क्या होता हैं:-  जिस दिन को शुभ प्रारम्भ किया जाता है तो उस तिथि ,वार  जैसे रविवार = 1 , इसी प्रकार शनि =7 , इसी प्रकार नक्षत्र की सँख्या अश्विनी नक्षत्र को एक आरम्भ करते हुए  = 1 गिनते हुए  अभिजीत नक्षत्र की गणना मत  करो ।
लग्न की राशि सँख्या का योग करे।इस योग को 9 से भाग दे। यदि शेषफल 8 आता है तो यह रोग पंचक कहते हैं। इस समय विवाह और उपनयन में त्याग करना चाहिए। यदि शेषफल 2 हैं तो यह अग्नि पंचक हैं इस समय घर सम्बन्धित कार्यो का त्याग करना चाहिए।और यदि शेषफल 4 हो तो यह राज पंचक कहलाता हैं इसमें गृह निर्माण और कार्यालय में पदभार ग्रहण नही करना चाहिए। यदि शेषफल 6 हैं तो यह चोर पंचक कहलाता है ,इस समय यात्रा का त्याग करना चाहिए।

सूर्य पंचक पांच प्रकार के होते है।
 1. रोग पंचक :-  सूर्य के अंशो की सँख्या में 6 जोड़ने कर 9 पर भाग कर। यदि शेषफल 5 की सँख्या आए तो यह रोग पंचक कहलाता हैं। जब सूर्य किसी भी राशि मे 8, 17 और 26 अंश का होता हैं तो यह होता हैं।सूर्य पंचक :- सूर्य पंचक पांच प्रकार के होते है।  1 रोग पंचक :- इस पंचक को इस तरह से देखा जाता है। सूर्य के अंश +6 ÷ 9 करे।शेष आए पांच तो रोग पंचक होता हैं। जब सूर्य किसी भी राशि मे 8, 17 और 26 अंशो में होतो रोग पंचक होता हैं।

2.   नृप पंचक :- सूर्य के अंश में +1 ÷ 9 बाकी शेष रहा  5  तो उस समय नृप पंचक होता हैं। जब किसी भी राशि मे 4,13, 22 अंश का होता हैं उस समय यह नृप पंचक बन जाता हैं।

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