Friday, September 17, 2021

1 अप्रैल 2022 को नव विक्रमी संवत 2079 का शुभारंभ होगा

 

                                             

       


 
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि 

           

                     समप्रभ: निर्विघ्नं कुरु देव सर्वकार्येषु सर्वदा || 

                                  ॐ श्री गणेशाय नमः   

           ॐ सूर्य देवाय नमःॐ चन्द्र देव नमःॐ मंगल देव नमःॐ बुध देवाय नमःॐ बृहस्पति देव            नमः,       ॐ शुक्र देवाय नमः

        ॐ शनि देव नमः ,                                           ओम राहु देव नमः,ॐ केतु देवाय नमः

  विक्रमी संवत  का शुभारंभ हुआ । 

      इसका आरम्भ काल ईसा से 57 वर्ष  पूर्व चैत्र शुक्ल पक्ष  की प्रतिपदा तिथि से  माना जाता हैं।विक्रमी संवत चाँद मास आधारित होने पर भी इसमें सौर मासों  का  समावेश रहता है।क्योंकि चाँद मास का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि  से किया जाता है।विक्रमी संवत के 135 वर्ष के पश्चात् राजा शालिवाहन इसका प्रचलन आरम्भ किया ।भारतवर्ष में इसी संवत को मान्यता प्रदान की थी | इसे शक संवत का नाम प्रदान किया था जो अधिक लोकप्रिय नही हो  पाया है।

        

 विक्रम संवत का आरम्भ 2062 में कलियुग के कुल वर्ष प्रारम्भ हुआ है। कलियुग की उतपत्ति सन् ईसवी शुरू होने से 3102 वर्ष पूर्व ,18 फरवरी भाद्रपद मास ,कृष्णपक्ष ,त्रयोदशी तिथि ,रविवार आश्लेषा नक्षत्र ,व्यतिपात योग में अर्धरात्रि के समय हुई थी। विक्रमी संवत       आरम्भ 3045 वर्ष पूर्व कलियुग की उतपत्ति मानी जाती है।जिसको कलि संवत के नाम से जानते हैं।     उसके बाद युधिष्ठिर सम्वत का प्रचनल रहा।विक्रमी संवत का शुभारंभ हुआ है।

          हमारा समस्त ब्रह्माण्ड  अत्यन्तविशाल ,असीम एवं अनन्त हैं।हमारे जीवन आकाश गंगा में स्थित ग्रहो और नक्षत्रों पर आधारित होता है। हमारे सौरमण्डल में पृथ्वी, मंगल,शुक्रआदि सभी ग्रह सूर्य से प्रकाशित होकर इर्दगिर्द परिक्रमा करते हैं । ग्रह मण्डल और तारो के समूह को आकाश गंगा के नाम से जानते है।

       हमारे पौराणिक साहित्य में सूर्य की उत्पत्ति और प्रलय का कारण माना गया हैं। ऋग्वेद के अनुसार ब्रह्म ने पूर्व कल्पो की भान्ति ही सूर्य,चन्द्र,नक्षत्रों,पृथ्वी,आंतरिक तथा उनमें स्थित आकाशीय पिण्डो की रचना की है। ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को अश्विनी नक्षत्र एवं मेष राशि मे सूर्योदय काल में सृष्टि की रचना हुई। उसी समय से ग्रहो ने अपनी-अपनी कक्षा में प्रति भ्रमण आरम्भ कर दिया।

                                      



            विक्रमी सवंत का 2062 में हुई थी। शाका संवत में 78 वर्ष जोड़ देने से सन् बन जाता है।इसी भाँति शाखा संवत में 135 जोड़ देने से विक्रमी संवत निकल आता है।सन् ईसवी में 57 वर्ष जोड़ देने से विक्रमी संवत हो जाता हैं। विक्रमी संवत 57 वर्ष बी:सी: में उज्जयिनी नरेश विक्रमादित्य ने विदेशियों पर विजयोत्सव के उपलक्ष्य में शुरू किया था।

                      हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भ होता है उस दिन के वार का स्वामी, उस वर्ष का स्वामी भी होना चाहिए।यह पहले ही बता दिया गया है कि हिन्दू नववर्ष चैत्र मास की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होता हैं।इस वर्ष में हिन्दू नववर्ष 1 अप्रैल 2022 को अमावस्या का समापन काल 11 बजकर 54 मिनट 08 सेकंड है,उसके पश्चात् प्रतिप्रदा का प्रारम्भ हो जाता है।भारतीय पद्धति के अनुसार एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक एक दिन होता हैं।

              संवत्सर :- संवत्सर 60 वर्षो का एक चक्र होता है जिससे प्रत्येक वर्ष का एक विशेष संवत्सर होता है।इसके प्रत्येक 20 वर्ष का स्वामी ब्रह्मा,विष्णु और शिव होते है।20 वर्षो का प्रत्येक भाग एक बीसी या विंशति कहलाता है।सन् 2020 में संवत्सर 24 मार्च से प्रारम्भ हुआ था।सूर्योदय के समय चैत्र मास के शुक्लपक्ष के प्रथम दिन को संवत्सर के नाम से मनोनीत किया जाता है।    


             ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ब्रह्मांड के सभी कार्यकलापों ग्रहों द्वारा नियंत्रित है आकाश में जो भी ग्रह और नक्षत्र है,उसे यह पृथ्वी और सम्पूर्ण ब्राह्मण अप्रभावित नही रहते हैं,यह ज्योतिष का मूलभूत सिद्धान्त है।लेकिन सिद्वान्त का प्रमाणिकता में संदेह करना तो दुराग्रही है


                 इस वर्ष विक्रमी संवत 2079 के आरम्भ में शिव विंशति के अंतर्गत दशम युग का पंचम "नल" नामक संवत्सर यानि 50 वां ( नया विक्रमी संवत्सर) होगा।नया साल होगा।

                नया संवत्सर जिसे विक्रमी संवत्सर कहा जाता है, मीन राशि में अमावस्या के दिन शुरू होता है, जब सूर्य और चंद्रमा मीन राशि में एक ही देशांतर पर होते हैं।ऐसे क्षण की तिथि और समय के लिए एक चार्ट बनाया जाता है, जिसे नववर्ष प्रवेश कुंडली कहा जाता है।  मिथुन लग्न के साथ 1 अप्रैल, 2022 को 11 बजकर 54 मिनट पर मीन राशि में नए संवत्सर 2079 यानी अमावस्या का राशिफल इस प्रकार है:-

                      नए विक्रमी संवत का आरम्भ 2 अप्रैल 2022 से होगा।1अप्रैल 2022 को अमावस्या सुबह 11 बजकर 54 मिनट पर समापन हो जाती हैं,उसके उपरांत सूर्य और चन्द्र रेवती नक्षत्र में प्रवेश करते हैं,उसी दिन नव विक्रमी संवत 2079 का प्रतिपदा का शुभारंभ शुरू हो जाता है।प्रत्येक दिन का आरम्भ सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक माना जाता हैं। परन्तु ज्योतिष शास्त्र के नियमानुसार नवसंवत तथा राजा आदि का निर्णय चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के वारादि के अनुसार किया जाता है।तदनुसार नल नामक विक्रमी संवत 2079 और चैत्र मास की नवरात्रि पर्व का शुभारंभ 2 अप्रैल 2022 ,दिन शनिवार,चैत्र प्रविष्टे 20 ,रेवती नक्षत्र तथा ऐन्द्र योग में होगा। विक्रमी संवत्सर के राजा शनि और मन्त्री गुरु से प्रारम्भ होगा।

                         हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भ होता है उस दिन के वार का स्वामी, उस वर्ष का स्वामी भी होना चाहिए।यह पहले ही बता दिया गया है कि हिन्दू नववर्ष चैत्र मास की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होता हैं।इस वर्ष में हिन्दू नववर्ष 1 अप्रैल 2022 को अमावस्या का समापन काल 11 बजकर 54 मिनट 08 सेकंड है,उसके पश्चात् प्रतिप्रदा का प्रारम्भ हो जाता है।भारतीय पद्धति के अनुसार एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक एक दिन होता हैं।

                      रोहिणी का वास विक्रमी संवत 2079 में मेष संक्रांति का प्रवेश पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र कालीन हुआ हैकि रोहिणी का वास समुद्र में होगा।जिस विक्रमी संवत का वास समुद्र पर होगा तो वर्षा अधिक उत्तरप्रदेश,बिहार,मध्यप्रदेशऔर उड़ीसा बाढ़ के प्रकोप बनेगा। रोहणी का वास समुद्र पर माली के घर पर में होगा।फ्लो और धन्य धान्य की वृद्धिहोगी।

             नव विक्रमी 2079 के राजा शनिदेव है ,शनि का वाहन भैसा है।शनि की दृष्टि पंचम स्थान,पूर्व-दक्षिण देशों में और  राज्यों में प्राकृतिक प्रकोप, भूकम्प,भूस्खलन,वर्षा की अधिकता बनी रहेगी।जन और धन की हानि , सत्ता परिवर्तन,राजनीतिक पार्टियों में मतभेद,घटनाओं में वृद्धि होगी।विभिन्न प्रकार बीमारियों पाई जाएगी।किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की हत्या का फरमान जारी हो सकता है।

              शनि-मंगल की युति मकर राशि धनिष्ठा नक्षत्र में स्थित हैं।जिसके स्वामी मंगल ग्रह है।शनि-मंगल दोनों ही तमोगुणी होने से धनिष्ठा को तमोगुणी मानना उचित होगा।तमोगुणी के प्रभाव से विध्वंस व विनाश की राह पकड़ कर दुसरो को कष्ट पहुँचाने में सुख मानने लगते है।आठ वसुओं के कारण बहुत व्यापक नक्षत्र माना जाता हैं।समाज में भ्रष्टाचार ,स्वार्थपरता,कपट का व्यवहार के चलते तमोगुणी व्यवहार निश्चित वरदान  साबित होगा।

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           5 अप्रैल 2022 को मंगल-शनि दोनों एक समान अंशो स्थित होंगे और वो समय भयंकर परिस्थितियां उत्पन्न करेगा।उसके बाद मंगल मकर राशि से कुंभ राशि प्रवेश करेंगे।नव विक्रमी संवत मिथुन लग्न की हैं,द्विस्वभाव का लग्न में हुआ है और लग्न के स्वामी बुध दशम स्थान में सूर्य एवं चन्द्र के साथ युति में है।विशेषता संसद,प्राशासनिक अधिकारी वर्ग और शासकीय कार्यालयों में आय से संबंधित भाव है,बुध अपनी नीच राशि मे स्थित हैं।सूर्य-चन्द्र और बुध पर शनि की दृष्टि हैं।नव वर्ष की पिछले साल की तरह काल सर्प योग निर्माण कर रहे हैं।शनि-मंगल मकर राशि में तथा बृहस्पति-शुक्र शनि की राशि कुम्भ में है।शनि,मंगल दोनों क्रूर ग्रह बृहस्पति-शुक्र शुभ ग्रह उनका परस्पर विरोधी ग्रहों का योग विश्व की शांति को भंग करने योगदान करेगे।अचानक 

                           सत्ता का फेरबदल ,आंतरिक द्वंद,सीमाओं पर युद्ध,आतंकवाद गतिविधियों,विस्फोटक घटना घटित होगी।भारत के बाहरी देशों जैसे पाकिस्तान,अफगानिस्तान,नेपाल,सीरिया,तुर्की,और फ्रांस आदि देशद्रोह-राजद्रोह और देश में फैलता जिहाद यानी प्रेम विवाह के प्रस्ताव उसके जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाना चाहते है,वो व्यापक रूप से फैलता दिखाई देगा।लग्न पर बृहस्पति की दृष्टि होने से विश्व के प्रमुख देशों जैसे कि इजरायल, अफगानिस्तान,ईरान में शांति प्रस्ताव लाए जाएगें। देशों में आधुनिक हथियार की दौड़ में अपना प्रभुत्व स्थापित करेगें।
                 बृहस्पति का मीन राशि में गोचर करेंगे और मीन राशि चीन देश की राशि हैं।बृहस्पति के ऊपर शनि की विशेष दृष्टि रहेगी ।चीन की विस्तार नीतियों के विश्व मे कई प्रकार विचित्र और अघटित घटनाएं घटती होगी।कई तरह उलट फेर होता दिखाई देगा।ग्रह स्थिति के अनुसार उथल-पुथल के संकेत बनते योग बन रहे हैं।जैसे प्राकृतिक आपदाओं, खड़ी फसलों पानी की कमी खराब होना, अचानक से बीमारी फैलना, जिसके कारण बच्चों, युवाओं को ग्रसित, अग्निकांड, भूकंप, भूखलन, सम्प्रदायिक उपद्रव आदि घटनाओं घटित होगी।उसने प्रभावित होने वाले राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार,असम और मुस्लिम देशों प्रभावित भी होने के संकेत मिल रहे है।17 मई 2022 को बृहस्पति,शुक्र और मंगल युति में होंगे।
29 अप्रैल 2022 को शनिदेव कुम्भ राशि में प्रवेश करेंगे और मंगल ग्रह के साथ युति में रहेंगे।17 मई 2022 तक युति में रहेंगे। जिसके कारण चीन,पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर में रक्तपात और हत्याकांड, मरने -मारने जैसी घटनाओं घटित होगी।
12 जुलाई 2022 से जनवरी 2023 तक  को शनि वक्री गति से मकर राशि गोचर करेंगे।जिस के कारण वायुवेग, अचानक गंभीर बीमारियों के लोग ग्रसित होंगे।भंयकर तूफान, भूकंप, वातावरण में परिवर्तन ,जलवायु परिवर्तन ,अधिक वर्षा होगी।
उसके बाद शनि कुम्भ राशि में गोचर करेंगे।


          कई देशों में गृहयुद्धऔर नए समीकरण दिखाई पड़ेंगे। भारतवर्ष में पड़ौसी देशों से विदेशनीति में सामंजस स्थपित नही हो पाएगा।भारतीय सीमा पर तनावपूर्ण माहौल बना रहेगा और युद्ध जैसे हालात बने रहेगे।     


                नव विक्रमी 2079 के राजा शनिदेव है ,शनि का वाहन भैसा है।शनि की दृष्टि पंचम स्थान,पूर्व-दक्षिण देशों में और  राज्यों में प्राकृतिक प्रकोप, भूकम्प,भूस्खलन,वर्षा की अधिकता बनी रहेगी।जन और धन की हानि , सत्ता परिवर्तन,राजनीतिक पार्टियों में मतभेद,घटनाओं में वृद्धि होगी।विभिन्न प्रकार बीमारियों पाई जाएगी।किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की हत्या का फरमान जारी हो सकता है।चीन,तिब्बत,अफगानिस्तान,पाकिस्तान,ताजिकिस्तान,जम्मू कश्मीर,बिहार,झारखंड आदि



         शनि-मंगल की युति17 मई 2022 तक रहेगी।पड़ोसीदेशों में कही कही पर उग्रवादियोंद्वारा विस्फोट,हत्याकांडसे धार्मिकउन्माद, जातीय दंगे कराकर भारी हानि का कारण बन सकते है।शनि ग्रह मुस्लिम-यहूदी-इसाई- धर्मावलंबियों का प्रतिनिधि ग्रह है।कही जगहों पर समुद्री-तूफान,अकाल ,अधिक वर्षा, सुनामी जैसा घटनाओं ,दुर्भिक्ष स्थितियो हालात बनेंगे।
 
                 29 अप्रैल 2022 को शनि कुम्भ राशि मे प्रवेश करेगें।36 दिनों के बाद शनि वक्री गति से गोचर करेगे। उसके 9 दिनों के बाद पुनः राशि आ जाएंगे।17 जनवरी 2023 के अन्त तक मकर राशि मे ही रहेंगे।भारतवर्ष के उत्तरी राज्यों,उत्तरी अमेरिका,यूरोपीय देशों में और भारत के उत्तरी -दक्षिणी मुस्लिम देशों राजनीतिक उथल- पुथल,अस्थिरता, सत्ता परिवर्तन,प्राकृतिक आपदाओं , हिंसक घटनाओं,राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन घटित होते दिखाई देंगे।कुम्भ राशि भारत की पश्चिमी दिशा को दर्शाती हैं।भारत के उत्तर -पश्चिम राज्यों में जैसे गुजरात,महाराष्ट्र हैं और पश्चिमी देशों यूरोप तथा पश्चिमी एशिया के देशों में प्राकृतिक प्रकोप, भयंकर बरसात,समुंद्री तूफान,चक्रवात,कही-कही अकाल जैसी परिस्थितियोंबनेगी।भारतवर्ष में समुद्री तटो समुद्री तूफान,ज्वार भाटा,से जनता को परेशानी और धन,जन हानि के योग बनेंगे।जब शनि कुम्भ राशि मे स्थित होंगे और वहां से तीसरी दृष्टि मेष,सप्तम दृष्टि से सिंह और दशम दृष्टि से वृश्चिक राशि पर रहेगी।ऊत्तर पश्चिमी राज्यों पंजाब,हरियाणा,गुजरात,राजस्थान,गुजरात,दिल्ली,जम्मूकश्मीर में उथल पुथल,राजनैतिक क्षेत्रों में उतारचढ़ाव,प्राकृतिक प्रकोप,अग्निकांड,आतंकी घटनाओंएवं विस्फ़ोट,भूकम्प की घटनाओं घटित होगी।




        2.  विक्रमी संवत के मंत्री बृहस्पति :- 
 जिस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है उस दिन का स्वामी मंत्री बनता है।  सूर्य गुरुवार  को मेष राशि में प्रवेश करेगे है।गुरु ग्रह शुभ कार्य करने वाले ग्रह है।सभी प्रकार के अनाज  भरपूर मात्रा में उत्पादन होगा ।सत्ता पक्ष की सरकार दिल लुभावने योजनाओं विकास की योजना,जिससे चारों तरफ विकास होता दर्शाया जाएगा,वास्तविक जीवन मे  क्या  असर पड़ता हैं, वो नक्शों में ही दृश्य होगी।भाषाओं से जनता को आकर्षित करेगी।
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3.  सस्येश ग्रीष्मकालीन फसलों के स्वामी शनि हैं :- 
 जिस दिन सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है, उस दिन के स्वामी को सस्येश कहा जाता है।शनिवार को सूर्य कर्क राशि मे प्रवेश करेंगे।गर्मियों की फसलों के स्वामी शनि देव है।सरकार के द्वारा निर्मित कानूनों और अध्यादेश से जनता दुखी और परेशान रहेगी। गेहूँ, जौ, चना, दाल, बाजार, कपाट आदि की उपज में कम उत्पाद होंगे।



4.धनेश शीतकालीन फसलों के स्वामी शुक्र हैं।
 5.मेघेश वर्षाकाल के स्वामी बुध है।
 6.रसेश (रसदार उत्पादन) के स्वामी चन्द्र हैं :- जिस दिन सूर्य तुला राशि में प्रवेश करते हैं।उसको रसेश कहते है,सोमवार को सूर्य तुला राशि में प्रवेश करेंगे, चन्द्र हुए इस वर्ष रसेश होंगे।चन्द्रदेव सुंदरता,आकर्षक,विलास जीवन से सम्बन्ध रखते है।राजनेता व्यक्तित्व वाले मनुष्य अपने विचारों को अलग अलग ढंग से व्यक्त करेगे।वर्षा पर्याप्त मात्रा में होगी,दूध,रसदार फलों का उत्पादन भी अधिक होगा।लोगो को ऐश्वर्य,जूस पीने और आनंद लेने का सौभाग्य मिलेगा।उत्पादन अधिक और विक्रय भी ज्यादा होगा ।लोग सुखी जीवन व्यतीत करेगे। 

7. निरसेश धातुओं के स्वामी शनि देव है :- 16 नवंबर 2022 को सूर्य मकर राशि मे प्रवेश करेंगे और शनिवार हैं।शनि उस दिन के स्वामी हैं।वही निरसेश धातुओं के स्वामी होते हैं।शनि से सम्बंधित धातु हैंलोहा,स्टील,लोहे बन वाली धातु कीलपेंच,मशीनें,लोहे के ईंजन,हवाईजहाज में उपयोग धातु, तेल,पेट्रोलियमपदार्थों, डीजल,फरनेस का तेल,काले कपड़े,एवं ऊनीवस्त्र,उड़द कीदाल,काली मिर्च,लकड़ी,दालचीनी,गर्म मसाले,कोयलाखदानों,कोयले बनी वस्तुओं आदि के उत्पादन में तेजी आएगी।
8 फलेश फलों के स्वामी मंगल हैं।


9. धनेश कोष अधिपती शनि हैं:-  जिस दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है,उस दिन का स्वामी धनेश होता हैं।17 सितंबर 2022 को सूर्य कन्या राशि गोचर करेगें।उस शनिवार है,शनिदेव हैं।शनि देव न्याय कर्ता भी हैं।इस विक्रमी संवत शनि देव कोषपति हैं।बाजार में धन की तंगी रहेगी।व्यापारीवर्ग को क्रय विक्रय में हानि उठानी पड़ेगी। क्योंकि शासकों वर्ग के धन और धनी व्यक्ति अपने रोगों और सन्ताप से परेशान रहेंगे।वैसे आर्थिकस्थिति और विकास धीमे रहे और जनता परेशान और दुःखी रहेगी। शासन तंत्र के कठोर नियम पारित होने से ,कृषि वर्ग प्राकृतिक आपदाओं इतना उत्पादन नहीं होगा।
 


10. दुर्गेश (सेनापति) बुध ग्रह हैं:-  जिस दिन सूर्य सिंह राशि मे प्रवेश करता है,उस दिन के स्वामी को दुर्गेश कहते है।बुधवार को सूर्य को सिंह राशि मे प्रवेश करेंगे।बुध हुआ दुर्गेश हैं। सेनापति भी कहते है।बुध ग्रह होने से दोनों प्रकार अच्छे और बुरे प्रभाव मिलेंगे।धनवान वर्गों का प्रभुत्व बना रहेगा। जनता को मिश्रित फल प्राप्त होंगे।सेना की चौकसी की आवश्यकता होगी।





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