Sunday, October 9, 2022

बारह पूर्णिमा और शरद पूर्णिमा का महत्व ( FULL MOON )






                चन्द्रमा की एक कला तिथि माना जाता हैं।तिथि का मान चन्द्रमा की गति पर आधारित होता है।एक मास में कुल 30 तिथियां होती हैं।15 तिथि कृष्ण पक्ष में और 15 तिथियां शुक्ल पक्ष में आती हैं। शुक्ल पक्ष की 15 तिथि को पूर्णिमा कहते है और कृष्ण पक्ष की 15 वीं तिथि को अमावस्या के नाम से जाना जाता हैं। शरद पूर्णिमा चंद्रमा के चरणों से भरी होती है और भगवान कृष्ण इस अवसर पर रास लीला करते हैं। इस दिन रामायण के रचयिता श्री वाल्मीकि की जयंती भी है।

एक वर्ष में 12 सालों से बनता है।इस तात्पर्य यह भी है।12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या आती हैं। 

1. चैत्र मास  पूर्णिमा हनुमान जयंती

 2. वैशाख मास की पूर्णिमा  

3. ज्येष्ठ मास पूर्णिमा  

4.आषाढ़ मास पूर्णिमा व्यास पूर्णिमा 

 5. श्रावण मास की पूर्णिमा रक्षाबंधन 

6.भाद्रपद मास की पूर्णिमा 

 7. अश्विन मास की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा 

 8. कार्तिक मास पूर्णिमा को  गंगा स्नान  

9. मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा  

10. पौष मास की पूर्णिमा  

11. माघ मास की पूर्णिमा 

12. फाल्गुन मास की पूर्णिमा होली का पर्व 


          शरद पूर्णिमा :- आश्विन मास शुक्ल पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है।

    धर्म शास्त्र के अनुसार इस दिन कोजागर व्रत को किया जाता है।दूसरे शब्दों में कौमुदी व्रत भी कहा जा सकता है।यह दिन वास्तव में भगवान श्री कृष्ण जी ने संसार की भलाई के लिए निर्धारित किया हैं, इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से सुधा झरना बिखरे हुए हैं।भगवान श्री कृष्ण जी ने रात्रि में नेवेद्य के लिए खीर के दूध होना चाहिए।चांदनी रात में भगवान को विराजमान करें और उनका सुन्दर शृंगार सज्जा श्वेत वस्त्रों से दर्शन करें। इस दौरान एक कथा का वर्णन किया गया है। एक साहूकार था जिसकी दो पुत्रियाँ थी उनमे से एक इस दिन का व्रत पूरा करती थी दूसरी अधूरा ही व्रत किया करती थीं।अतः दूसरी के सन्तान जो भी संतान होती थी वो मर जाती थी।तब शाहूकार ने पंडित से इसका कारण जानना चाहते थे कि किस कारण से दूसरी लड़की की सन्तान मर जाती हैं। फिर आचार्यो ने बताया कि यह लड़की शरद पूर्णिमा का व्रत अधूरा छोड़ देती हैं, इससे इसकी सन्तान मर जाती हैं। फिर वो पूर्णिमा का व्रत श्रद्धा से साथ करने लगी और उसके एक लड़का उत्पन्न हुआ वो भी मर गया, मृत शिशु को वही पर लेटा कर अपनी बहन के पास गई और उसको बुलाकर लायी, उसकी बहन के साड़ी के पल्लू लगते ही वह बच्चा जिन्दा हो गया ।फिर वह हर पूर्णिमा को व्रत करने लगी। हर शरद पूर्णिमा को खीर बनाकर चंद्रमा और तारो की छाया में सारी रात्रि उस खीर को शीतल छाया में रखकर, अगले दिन उसका सेवन करने से शरीर और मन दोनों शीतलता प्रदान करता है।

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