1. अश्विनी नक्षत्र :-
सभी नक्षत्रों के चार चरण होते है। घोड़े का सिर अश्विनी प्रतीक चिन्ह है। घोड़े को सवारी के लिए इस्तेमाल करते हैं। घोड़ा हमेशा सवारी के लिए तैयार रहता हैं। केतु ग्रह इसके स्वामी हैं जातक जिंदा दिल ,समझदार होते हैं। जो सोचता उसको जल्दी से कार्यरूप देता हैं जिसके कारण नुकसान भी उठता हैं। छोटा कद , पुष्ट देह,सरल ह्रदय,क्रीड़ा प्रेमी होता हैं। किसी कार्य के अदुभुत क्षमता रखा है। यह जातक सारी उम्र कूदता रहता हैं। जिसके हानि भी हो जाती है। इस नक्षत्र वाले जातक सजने -सँवरने में अधिक विश्वास रखते हैं।यह वैश्य जाति का प्रतिनिधि माना जाता हैं।
अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण में बालक /बालिका का जन्म हो। पिता को कष्ट एवं धन हानि आदि अशुभ परिणाम होते हैं। अश्विनी नक्षत्र के दूसरे चरण जन्म लेने वाला धन का अपव्यय करता है। तृतीय चरण मे जन्म लेने वाला जातक पिता के आकस्मिक यात्रा देता है। चतुर्थ चरण जन्म लेने जातक स्वयं अपने शरीर के लिए अरिष्टकारी कारक होता हैं।
प्रथम नक्षत्र अश्विनी वैश्य जाति का प्रतिनिधित्व करता है।वाणिज्य करने सभी गुण अश्विनी नक्षत्र वाले जातकों में होते है। इस नक्षत्र के जातकों पुरूष संज्ञक माना जाता हैं। अश्विनी नक्षत्र मंगल की राशि मे सूर्य उच्च स्थान पाता हैं। अश्विनी नक्षत्र का अंग घुटना हैं।घुटने की चोट लगने से घोड़े की तीव्र गति से दौड़ते है उनका घुटने अधिक बली होते है। वात,पित्त,कफ में अश्विनी नक्षत्र वायु का प्रतिनिधितव करता हैं। अश्विनी का स्थान केंद्र होता हैं।
अश्विनी के चार पद :-
1. अश्विनी का प्रथम पद मेष राशि के शून्य अंश से 3 अंश 20 कला तक होने के कारण मेष राशि का प्रथम नवाशं बनता हैं।इस पद के स्वामी मंगल हैं जो जातक को साहस ,उत्साह व बल प्रदान कर अपने क्षेत्र अग्रणी बनता हैं। ऐसे जातक कर्मठ,ऊर्जावान तथा नेतृत्व करने सक्षम होते है।गण्डमूल संज्ञक होने के पिता के लिए कष्ट कारक होता हैं।
1. अश्विनी का प्रथम पद मेष राशि के शून्य अंश से 3 अंश 20 कला तक होने के कारण मेष राशि का प्रथम नवाशं बनता हैं।इस पद के स्वामी मंगल हैं जो जातक को साहस ,उत्साह व बल प्रदान कर अपने क्षेत्र अग्रणी बनता हैं। ऐसे जातक कर्मठ,ऊर्जावान तथा नेतृत्व करने सक्षम होते है।गण्डमूल संज्ञक होने के पिता के लिए कष्ट कारक होता हैं।
2. द्वितीय पद :- मेष राशि मे 3 अंश 20 कला से 6 अंश 40 कला तक है। इसका स्वामी शुक्र ग्रह हैं। इस चरण जन्मे बच्चे साधन संपन्न , भोग विलास के प्रेमी तथा धन वैभव युक्त सम्मानित आदमी होता हैं।परन्तु धन का अपव्यय करता हैं।
मस्तिष्क की कार्य प्रणाली पर शोध करने वाले चिकित्सकों ने अश्लेषा नक्षत्र जातको को क्रूर ,परिशोधी व थोड़ा हिंसक माना जाता हैं। कफ प्रकृति, जल तत्व की कर्क राशि रहता हैं। आश्लेषा नक्षत्र में उल्टे क्रम से परिणाम देखना चाहिए। इस नक्षत्र का चतुर्थ पाद में बालक का जन्म हो तो पिता की मृत्यु हो। तृतीय पाद में जन्म हो तो माता की मृत्यु होती हैं। दूसरे पाद जन्म हो तो स्वयं का धन का नाश करता हैं। प्रथम पाद में जन्म हो तो अशुभ प्रभाव नही होता हैं।
2. आश्लेषा नक्षत्र :-
आश्लेषा नक्षत्र संबंध सर्प की कुंडली , सबको समेटने वाला, सुंदर व आकर्षक व्यक्तित्व से माना जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि भगवान विष्णु की शेष शैया वाले नागराज से भी जोड़ते हैं। सर्प हमेशा छुप कर वार करता हैं। जातक में यह गुण विद्यमान होते है। आश्लेषा नक्षत्र पर शुभ प्रभाव हो तो जातक बुद्धिमान, व्यवहार कुशल, भविष्य दृष्टा और प्रतिभाशाली एवं अंतर्प्रज्ञा युक्त होता हैं। यदि पाप प्रभाव से दृष्टि हो तो जातक स्वार्थी, कपटी, धोखेबाज एवं छिप कर प्रहार करने वाला होता हैं। पिछले जन्म के अधूरे कार्य को पूरा करने के लिए जन्म लेता है। वंश परम्परा के अनुरूप कार्य करता हैं।मस्तिष्क की कार्य प्रणाली पर शोध करने वाले चिकित्सकों ने अश्लेषा नक्षत्र जातको को क्रूर ,परिशोधी व थोड़ा हिंसक माना जाता हैं। कफ प्रकृति, जल तत्व की कर्क राशि रहता हैं। आश्लेषा नक्षत्र में उल्टे क्रम से परिणाम देखना चाहिए। इस नक्षत्र का चतुर्थ पाद में बालक का जन्म हो तो पिता की मृत्यु हो। तृतीय पाद में जन्म हो तो माता की मृत्यु होती हैं। दूसरे पाद जन्म हो तो स्वयं का धन का नाश करता हैं। प्रथम पाद में जन्म हो तो अशुभ प्रभाव नही होता हैं।
3. मघा नक्षत्र एक गण्डमूल नक्षत्र हैं।
इसकी आकृति घास काटने वाली दराँती के नीचे के दस्ते यानि मुठ पर मघा नक्षत्र का मुख्य तारा मघा स्थित हैं। इसके स्वामी केतु ग्रह हैं।यह नक्षत्र सिंह राशि मे होने से नक्षत्र का राशिपति सूर्य माना जाता है। दराँती का उपयोग फ़सक काटने के लिए करते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक पिछले जन्म के कर्मो के पुण्य कर्मों की फ़सल इस जन्म में काटने पर विवश होता हैं।शुभ कर्म उसे स्वास्थ्य,सम्मान व सत्ता का सुख मिलता हैं। मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक आत्मज्ञान व आत्मसाक्षात्कार में मघा के नक्षत्रपति केतु एवं राशिपति सूर्य की विशेष भूमिका होती हैं। इस नक्षत्र को पितृ या पूर्वजो को मघा नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता भी माना जाता है। जातको को कुछ बीमारियां वंशानुगत होती है। जिस प्रकार भागीरथी नदी को लाने के लिए तीन पीढ़ियों के काम सामान्य बात है। मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों आगामी जन्म लेने का पूर्वभास होता हैं।
मघा नक्षत्र एक सक्रिय नक्षत्र हैं क्योंकि अग्नि तत्व की राशि सिंह राशि मे जन्म लेता है।सूर्य ग्रह राशि के स्वामी हैं इसलिए जातक में ऊर्जा, स्फूर्ति से परिपूर्ण होता हैं। वैसे शुद्र नक्षत्र है।स्त्री संज्ञक नक्षत्र हैं।कफ प्रधान ,पूर्व,दक्षिण,उत्तर दक्षिण-पश्चिम दिशा माना जाता हैं।
मघा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने वाला जातक माता के लिए अनिष्टकारी, दूसरे चरण में जन्म लेने वाला जातक पिता के लिए अनिष्टकारी होता हैं। तृतीय चरण में जन्म लेने वाला जातक धन संपदा एव सवारी का सुख प्राप्त करता हैं। चतुर्थ चरण वाला समस्त सुख सुविधाओं से परिपूर्ण होता हैं।
ज्येष्ठा नक्षत्र का प्रथम चरण में उत्पन्न जीव बड़े भाई को अरिष्टकर होता हैं। दूसरे चरण में उत्पन्न बालक /बालिका छोटे भाई के लिए अरिष्टकारी होता हैं।ज्येष्ठा नक्षत्र तीसरे चरण में उत्पन्न माता के अरिष्टकर होता हैं तथा ज्येष्ठा नक्षत्र के चतुर्थ चरण उत्पन्न बालक स्वयं के लिए शुभ नही होता हैं।
भचक्र के तीसरे तिहाई भाग का प्रथम नक्षत्र हैं।मूल नक्षत्र को महत्व प्रदान करने के लिए ही सभी तिहाई भाग के प्रथम व नवम नक्षत्र मूल संज्ञक माना जाता हैं। इस नक्षत्र का तापमान 30 हजार सेलशियस आंका गया हैं।इस नक्षत्र के स्वामी केतु ग्रह हैं। मूल का अर्थ है पौधे की जड़ ,यानि केन्द्र बिंदु हैं।यह नक्षत्र अपने नाम द्वारा जाना जाता हैं। जड़ सैदव भीतर रहती हैं,अपनी गुप्त मनोभाव ,अव्यक्त इच्छाओ , गुप्त रहस्यपूर्ण है मूल नक्षत्र हैं।
मूल नक्षत्र को स्वयं बृहस्पति जी ने आशीर्वाद दिया है।क्योंकि गुरु की मूलत्रिकोण राशि धनु ,जो काल पुरूष का भाग्य स्थान हैं उसी शुभ राशि मे मूल नक्षत्र विद्यमान हैं। मूल नक्षत्र भारी उथल पुथल के बाद सत्य,समानता ,न्याय व अहिंसा की जड़ो को जमाता हैं। मूल नक्षत्र में वशिष्ट गुण किसी भी बात तह तक पहुँचना ,समस्या का समाधान करने की शक्ति रखता हैं। कुछविद्वानों का मत हैं कि मूल नक्षत्र एक पुरूष नक्षत्र हैं,भगवानविष्णु जी के दोनों चरण के रूप में स्वीकृति दी है। मूल नक्षत्र वाले जातक घमंडी ,सबसे श्रेष्ठ मानने वाला, हठी,साहसी कार्य करने वाला होता हैं। अपने स्वामी केतु का असर भी दिखाई देता हैं।जातक बहुधा हिंसा, तोड़ फोड़ में भी रुचि रखता हैं।
4. ज्येष्ठा नक्षत्र सबसे बड़ा नक्षत्र हैं
। इस नक्षत्र के स्वामी बुध ग्रह हैं। इस नक्षत्र की गणना दिव्य शक्ति के रूप में कई जाती हैं। ज्येष्ठा नक्षत्र का जातक ,पिछले कर्मो के शुभ प्रभाव से धन -वैभव व सफलता पाता हैं। वैसे राक्षस गण की उपमा दी जाती हैं। यदि यह नक्षत्र पाप से पीड़ित हो तो जातक अभिमान वंश धर्म विरुद्ध आचरण कर बैठते है। शुभ प्रभाव होतो जातक देवीय कृपा से पद ,प्रतिष्ठा, धन और यश प्राप्त करता हैं।ज्येष्ठानक्षत्र वायु प्रधान नक्षत्र हैं। ज्येष्ठा नक्षत्र जातक यदि वायु सम्बन्धित रोग, पेट गैस तथा गठिया सरीखे रोगों से कष्ट पाते हैं।ज्येष्ठा नक्षत्र का प्रथम चरण में उत्पन्न जीव बड़े भाई को अरिष्टकर होता हैं। दूसरे चरण में उत्पन्न बालक /बालिका छोटे भाई के लिए अरिष्टकारी होता हैं।ज्येष्ठा नक्षत्र तीसरे चरण में उत्पन्न माता के अरिष्टकर होता हैं तथा ज्येष्ठा नक्षत्र के चतुर्थ चरण उत्पन्न बालक स्वयं के लिए शुभ नही होता हैं।
5. मूल नक्षत्र
भचक्र के तीसरे तिहाई भाग का प्रथम नक्षत्र हैं।मूल नक्षत्र को महत्व प्रदान करने के लिए ही सभी तिहाई भाग के प्रथम व नवम नक्षत्र मूल संज्ञक माना जाता हैं। इस नक्षत्र का तापमान 30 हजार सेलशियस आंका गया हैं।इस नक्षत्र के स्वामी केतु ग्रह हैं। मूल का अर्थ है पौधे की जड़ ,यानि केन्द्र बिंदु हैं।यह नक्षत्र अपने नाम द्वारा जाना जाता हैं। जड़ सैदव भीतर रहती हैं,अपनी गुप्त मनोभाव ,अव्यक्त इच्छाओ , गुप्त रहस्यपूर्ण है मूल नक्षत्र हैं।
मूल नक्षत्र को स्वयं बृहस्पति जी ने आशीर्वाद दिया है।क्योंकि गुरु की मूलत्रिकोण राशि धनु ,जो काल पुरूष का भाग्य स्थान हैं उसी शुभ राशि मे मूल नक्षत्र विद्यमान हैं। मूल नक्षत्र भारी उथल पुथल के बाद सत्य,समानता ,न्याय व अहिंसा की जड़ो को जमाता हैं। मूल नक्षत्र में वशिष्ट गुण किसी भी बात तह तक पहुँचना ,समस्या का समाधान करने की शक्ति रखता हैं। कुछविद्वानों का मत हैं कि मूल नक्षत्र एक पुरूष नक्षत्र हैं,भगवानविष्णु जी के दोनों चरण के रूप में स्वीकृति दी है। मूल नक्षत्र वाले जातक घमंडी ,सबसे श्रेष्ठ मानने वाला, हठी,साहसी कार्य करने वाला होता हैं। अपने स्वामी केतु का असर भी दिखाई देता हैं।जातक बहुधा हिंसा, तोड़ फोड़ में भी रुचि रखता हैं।
मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने वाला जातक अपने पिता के आरिष्टकार होता हैं। मूल नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म लेने वाला जातक अपनी माता के लिए अच्छा नही होता हैं। तीसरे चरण में जन्म लेने वाला। जातक स्वयं के अच्छा नही होता हैं। मूल नक्षत्र के चौथे चरण में जन्म लेने वाला जातक अनिष्ट प्रद माना जाता हैं। मूल नक्षत्र की शांति व पूजन करवाने से सुख व समृद्धि प्राप्त करता हैं।
1 पाद: - इस पाद में जन्म लेने वाले बच्चे पिता के लिए अशुभ होते हैं।
द्वितीय पाद: - इस पाद में जन्म लेने वाले बच्चे माता के लिए अशुभ होते हैं।
तृतीय पाद: - इस पाद में जन्म लेने वाले बच्चों को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ेगा।
चौथा पाड़ा: - इस पाद में जन्म लेने वाले बच्चे परिवार और रिश्तेदारों के लिए शुभ होते हैं।
1 पाद: - इस पाद में जन्म लेने वाले बच्चे पिता के लिए अशुभ होते हैं।
द्वितीय पाद: - इस पाद में जन्म लेने वाले बच्चे माता के लिए अशुभ होते हैं।
तृतीय पाद: - इस पाद में जन्म लेने वाले बच्चों को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ेगा।
चौथा पाड़ा: - इस पाद में जन्म लेने वाले बच्चे परिवार और रिश्तेदारों के लिए शुभ होते हैं।
6 रेवती नक्षत्र :-
काल पुरूष की कुंडली का बारहवाँ स्थान या मीन राशि ,जिसके स्वामी बृहस्पति ग्रह हैं। रेवती नक्षत्र भी गण्डमूल नक्षत्र का अंतिम नक्षत्र हैं।बुध ग्रह इसके स्वामी हैं।रेवती का अर्थ है धनी- मानी एवं प्रतिष्ठित । भचक्र के अन्तिम नक्षत्र के नाम का अर्थ मोक्ष, आनन्द या सभी अभावो का नाश होना चाहिए था। इस नक्षत्र में मां के लक्ष्मी के सभी रूप आते हैं। यह एक शुभ परिवर्तन लाने वाला नक्षत्र भी है।विष्णु एवं बृहस्पति का पूर्ण आशीर्वाद होता हैं। राशि की छवि दो मछलियां जो एक दूसरे की पुंछ पकड़े हुए हैं यानि मोक्ष की इच्छा करता हैं। वो मीन राशि का प्रतिक हैं। रेवती नक्षत्र का संबंध आत्म ज्ञान एवं मोक्ष से भी हैं। रेवती नक्षत्र की आकृति एक ढोल यानि मृदंग जैसी है।अन्दर से खोखला यानि दोषो से मुक्ति और प्रभु की ओर ले जाने वाले है। भगवान विष्णु एवं बुध दोनों ही विद्या ,बुद्धि व चातुर्य के प्रतीक हैं। ऐसा जातक आस्थावान और विपरीत परिस्थितियों में भी मानसिक संतुलन व धैर्य न खोने वाले होते हैं। दूसरे को अपनी बातों में उलझाने वाला होता है। अपने से प्रभावित करने की क्षमता होती हैं।
रेवाती नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने वाला जातक राजा के समान, ऐशवर्यवान, होता हैं। दूसरे पाद में जन्म लेने वाला जातक सुख साधनों से सम्पन्न होता हैं। तीसरे चरण में जन्म लेने वाले जातक को धनी और अधिकार संपन्न होता हैं। चौथे चरण में जन्म लेने वाले जातक की अन्तिम दो घड़ियां गंडांत के अनिष्टकारी होती हैं।
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